बेमतलब की बातें

मुहावरे का असल जिंदगी के वाकया मे प्रयोग करें - हक्का बक्का होना.
उन पांच मिनटों में कितनी कुछ बातें कहनी थी, करनी थी, सवाल पुछने थे, पर हंस के सिर्फ Thank You बोल पाई. किसी का presence inspire कर जाये ऐसी शक्सियत - वरून ग्रोवर!
Sold out show था. पर दिल की बडी तमन्ना थी. और ज़िद भी. जब ज़िद पर अड जाये तो कुछ भी हो सकता हैं. Tickets मिलने के पहले ही छुट्टी declare कर दी. आधे घंटे के reminders लगा लगा कर BMS check किया के कुछ miracle हो जाये. ईतनी शिद्दत से काम पर ध्यान दिया होता तो आज पूरे बैंक के NPA zero होते. पर खैर, ticket window आखिरकार खुल गई और excitement मे venue का accessibility देखे बिना tickets book कर दी.
अब सवाल ना छुट्टी का था, ना tickets का. सवाल था तुम उस ticket का इस्तेमाल कर के अपनी seat तक पहुंच सकते हो भी या नहीं. Because a single flight of stairs equals Mount Everest when you move on four wheels. Google maps के accessibility section पर मुझे उतना ही भरोसा है जितना कि wilful defaulters के वायदों पर. जब तक आखों से loan recover होते नहीं दिखता तब तक विश्वास नहीं होता. वैसे ही जब तक मैं खुद वो जगह न देख आऊं, मुझे यकीन नहीं था वो accessible है, Google जो भी दावा कर ले. जैसे defaulters धोखा देते है ये accessibility feature भी false assurances देता है (personal experience)
किसी भी venue/hotel/restaurant या public place को call करके ये सवाल करना बेफिज़ूली है. पहले उन्हें wheelchair accessibility की परिभाषा समझानी पडती है, फिर वो अपना दिमाग टटोल कर आप ही को पुछेंगे, "क्या आपको wheelchair चाहिए?" आप अपनी सहनशीलता को मुश्किल से नियंत्रण मे रखते हुए बताते हो, "जी नहीं, मेरे पास मेरी खुद की chair है, लेकिन क्या आपके building मे ramp/lift/elevator जैसी facility है?"
वो फिर हंसा की तरह पुछेंगे, "प्रफुल Ramp मतलब?"
"Ramp हंसा, ramp.....वो building मे ऊपर चढने के लिए बना slope होता है ना...वो ramp!"
फिर वो पहेलियाँ बूझाते हुए कहेंगे, "....हाँ है....actually नहीं है.... मतलब lift ground floor पर ही है लेकिन चार-पाँच सीढियां चढ कर lift का entrance है." इनकी dictionary मे ground floor की परिभाषा ही अलग है. और accessibility की परिभाषा गैर मौजूद.
ये मन ही मन गणित सुलझाने से अच्छा है खुद जा के आंखों देखा हाल पता कर लू. इस तरह हर venue checking की मेरी और मेरे parents की पुरानी आदत है. School time मे exam centre का access check करने से शुरू हुआ सफर bank की branches पहले ही देख आना यहां तक चला आ रहा है. और आगे भी चलता रहेगा. We are after all navigating an inaccessible world filled with inaccessible minds.
जब शो शुरू हुआ और वरुन ग्रोवर ने शुरुआत में accessibility issue का ज़िक्र किया, मैं कुछ सेकंड के लिए स्तब्ध हो गई. इसके पहले accessibility के मुद्दे पर सरे आम किसीने वाकया नहीं किया था. Disabled लोग खुद ही आवाज़ उठाते रहे है और वो आवाजें समाज के indifference के तले हर बार दब जाती है.
Publicly जब भी disabled लोगों का ज़िक्र हुआ उनकी समस्याओं को सम्बोधित ना करते हुए समाज ने उनके धैर्य और ढाढ़स को "inspiring" बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया. कौनसा inspiration? काहेका inspiration? Inspiration का अचार डालना है हमने? ये बेफिज़ूल का शब्द non-disabled लोग अपनी जेबों मे रखें तो बेहतर है. इसे बाहर निकालकर अपनी मूर्खता और ignorance को जग जाहिर ना करें. बल्कि हमारी कठिनाइयों को सूने, उनपर गौर करें और हमारी सलाह से इन मसलों को हल करें. बस ये नहीं की "differently-abled" जैसे meaningless शब्द का इस्तेमाल करके अपनी खुद की ही पीठ थपथपाली और चल दिये. वरून ने इस अहम मुद्दे को satire के रूप मे बखूबी पेश किया. अब ये बात कीतने liberal दिलों तक पहुंची और न केवल पहुंची पर दिलों में बस गई ये तो वक्त ही बतायेगा. इस satire के पिछे की सीख कोई सीखेगा या majority बस ठहाके लगाकर निकल जायेगी....
(P.S. In your excitement, never ever mistakenly call a celeb by a wrong name. I did that to Umesh Vinayak Kulkarni during this show. Obviously he walked passed me without a glance 🤦)
