खि़रमन

Mummy एक दिन सुबह-सुबह अचानक युहीं गुनगुना रही थी, "पत्ता पत्ता, बूटा बूटा..." हाथ में चाय का कप, सुबह के समय gallery से आती गुलाबी ठंड और अपने छोटे से garden को निहारती mummy.
Mummy को ऐसे कई बार observe किया है.... पेडों, पौधों, पत्तों मे खो जाते हुए.
कभी किसी नए पौधे ने गमले मे जड पकड़ ली और ज़रा सा उभरने लग गया तो फौरन वो pot मेरे पास ले आएगी और बडे ही उत्साह से बताएगी,
"देख देख ये लग गया"
मैंने कहा, "हाँ, मिट्टी है तो लगना ही था..."
उसने समझाया, "अरे पौधों को अगर एक गमले से दूसरे गमले में shift करो तो shock मे चले जाते है"
"अच्छा! कैसे पता चलता है shock मे गये?"
"कुछ दिन पौधा मायुस रहता है. झुक जाता है. कुछ पत्ते पीले भी पड जाते है. लेकिन कुछ दिनों बाद फिर से पौधा अच्छी से उभरता है. हम कैसे जब अकोला से पुने shift हो गए, कुछ महीने लग गए ना settle होने मे...
इसिलिए बहुत देखभाल करनी पडती है पौधों की. बडे ही नाज़ुक तरिके से उखाड़ कर दूसरे गमले में लगाना होता है. कई पेड़ तो इत्मीनान पसंद होते है. जंगलों में इन पेडों से बुरी गंध आती है, जिससे बाकी जीव इनसे दूर रहते हैं. आसपास घास भी नहीं उगती. वो अपना space disturb नहीं होने देना चाहते."
मैंने पूछा, "अगर दूसरे गमले में उभरे ही नही तो?"
"उभरते है ना! बहारते है. हम care लेते हैं न...उसे वक्त पर पानी डालते है. मिट्टी का खयाल रखना पडता है. फिर वो नए environment मे comfortable हो जाता है"
पौधों पर बात करते वक्त mummy की आंखों में एक अलग चमक रहती है.
मैंने फिर कहा, "तू भी तो कभी कभी किसी जगह से पौधे उखाड़ लाती है और कभी कभी वो नहीं लगते"
वो समझाती है, "मैं कलम तोड़ कर लाती हूँ. पौधा कभी नहीं उखाड़ती. दोंनो मे फर्क है. कोई पौधा हमें लगाना हो तो उसकी कलम ही काफी होती हैं.
अब देख ये पत्ता झुक गया. नाराज़ हो गया है. पौधों को बहुत nurture करना पडता है गुड्डू, तभी वो पनपते हैं. मेहनत लेनी पड़ती है."
इतने सालों में हमारे घर में पौधे हमेशा से रहे. Mummy ने हमारी ही तरह पौधों की देखभाल की. और करती रही. चाहे कितने मौसम बदले, कितने साल गुज़रे, कितनी कठिनाईयां आइ, हालात मुश्किल हुए, पर mummy ने कभी अनदेखा नहीं किया. ना हमारी सेहत की तरफ, ना पौधों की सेहत कि तरफ.
